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दुकानदारी ने तो पुण्य कमाने क मौका भी छीन लिया है?
पुण्य कमाना हर कोई चाहता है,मैं भी।मगर अब पुण्य कमाना भी कठीन हो गया है।पुण्य कमाने का एक सुनहरी मौका तो लगता है कि अब हमसे हमेशा हमेशा के लिये छीन लिया गया है।बचपन से सुनते आ रहा हूं कि पानी पीलाने से बड़ा कोई पुण्य नही है।ये उस समय प्रचलित कहावत अब सुनाई भी नही देती।कारण अब पानी पिलाने की नही बेचने की चीज़ हो गई है।कभी पानी पीलाने के लिये होड़ मची रहती थी।गर्मियां शुरु होते ही शहर मे जगह जगह प्याऊ खुल जाते थे।प्याऊ यानी पुण्य कमाने की गारंटी वाला काम।प्याऊ खोलना और उसे तीन महीने तक़ चलाना आसान नही होता था।बड़े बड़े साहूकार-धन्ना सेठ अपनी-अपनी सुविधा से प्याऊ पर बैठ कर पानी पिलाने की अपनी ड्यूटी लगवा लेते थे। बस स्टैण्ड और रेलवे स्टेशन पर भी प्याऊ खोले जाते थे।मुझे अच्छी ्तरह से याद है कि जब हम गर्मियों की छुट्टियों मे ननिहाल जाया कर्ते थे तो रायपुर में बनी सुराही साथ ले जाया करते थे और पानी मांगने पर हर किसी को पानी दे दिया करते थे।पानी खतम होने पर उन दिनों प्लेट्फ़ार्म पर आज मिलने वाली वाटर कूलर जैसी सुविधाये नही होती थी।तब छोटे से लेकर बडे स्टेशनों पर प्याऊ खुला करते थे। अब आप स्टेशन पर प्याऊ नही खोल सकते क्योंकि वंहा पानी बेचने वाला का धधा मार खा जायेगा। यही हाल शहर का भी है।पुण्य कमाने की हण्ड्रेड पर्सेंट गारंटी वाला काम अब कोई नही करता।सब पानी बेचने लगे हैं।पहले तो सिर्फ़ बोतले बिकती थी जो हर किसी के लिये खरीदना संभव नही था,मगर अब तो पाऊच आ गये हैं बिकने के लिये।क्या किया जा सकता है पाप और पुण्य की कहानियों से अटे-पड़े इस देश मे पानी बिकने लगेगा ये शायद किसी ने सोचा भी नही होगा।खैर आज जब मुझे किशोर शापिंग माल के संचालक गिरिश ने फ़ोन कर प्रेस क्लब बुलाया और प्याऊ शहर मे चलित प्याऊ खोलने की योजना बताई तो मैं वंहा तत्काल गया।एक रिक्शे पर बने प्याऊ का उद्घाटन वंही हम लोगो ने ही किया ये सोच कर कि शायद थोड़ा पुण्य मिल जाये।
Posted by Anil Pusadkar at 12:21 AM 9 comments
Labels: mineral water, चलित प्याऊ, पाऊच, पानी, प्याऊ, मिनरल वाटर बोटल
Friday
दुकानदारी ने तो पुण्य कमाने क मौका भी छीन लिया है?
पुण्य कमाना हर कोई चाहता है,मैं भी।मगर अब पुण्य कमाना भी कठीन हो गया है।पुण्य कमाने का एक सुनहरी मौका तो लगता है कि अब हमसे हमेशा हमेशा के लिये छीन लिया गया है।बचपन से सुनते आ रहा हूं कि पानी पीलाने से बड़ा कोई पुण्य नही है।ये उस समय प्रचलित कहावत अब सुनाई भी नही देती।कारण अब पानी पिलाने की नही बेचने की चीज़ हो गई है।कभी पानी पीलाने के लिये होड़ मची रहती थी।गर्मियां शुरु होते ही शहर मे जगह जगह प्याऊ खुल जाते थे।प्याऊ यानी पुण्य कमाने की गारंटी वाला काम।प्याऊ खोलना और उसे तीन महीने तक़ चलाना आसान नही होता था।बड़े बड़े साहूकार-धन्ना सेठ अपनी-अपनी सुविधा से प्याऊ पर बैठ कर पानी पिलाने की अपनी ड्यूटी लगवा लेते थे। बस स्टैण्ड और रेलवे स्टेशन पर भी प्याऊ खोले जाते थे।मुझे अच्छी ्तरह से याद है कि जब हम गर्मियों की छुट्टियों मे ननिहाल जाया कर्ते थे तो रायपुर में बनी सुराही साथ ले जाया करते थे और पानी मांगने पर हर किसी को पानी दे दिया करते थे।पानी खतम होने पर उन दिनों प्लेट्फ़ार्म पर आज मिलने वाली वाटर कूलर जैसी सुविधाये नही होती थी।तब छोटे से लेकर बडे स्टेशनों पर प्याऊ खुला करते थे। अब आप स्टेशन पर प्याऊ नही खोल सकते क्योंकि वंहा पानी बेचने वाला का धधा मार खा जायेगा। यही हाल शहर का भी है।पुण्य कमाने की हण्ड्रेड पर्सेंट गारंटी वाला काम अब कोई नही करता।सब पानी बेचने लगे हैं।पहले तो सिर्फ़ बोतले बिकती थी जो हर किसी के लिये खरीदना संभव नही था,मगर अब तो पाऊच आ गये हैं बिकने के लिये।क्या किया जा सकता है पाप और पुण्य की कहानियों से अटे-पड़े इस देश मे पानी बिकने लगेगा ये शायद किसी ने सोचा भी नही होगा।खैर आज जब मुझे किशोर शापिंग माल के संचालक गिरिश ने फ़ोन कर प्रेस क्लब बुलाया और प्याऊ शहर मे चलित प्याऊ खोलने की योजना बताई तो मैं वंहा तत्काल गया।एक रिक्शे पर बने प्याऊ का उद्घाटन वंही हम लोगो ने ही किया ये सोच कर कि शायद थोड़ा पुण्य मिल जाये।
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